Friday, 16 July 2021

श्रीमद् भगवद् गीता :- श्लोक 18 - (Shlok 18)

 कर्मण्य कर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः ।
स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत्‌ ॥ 



भावार्थ : जो मनुष्य कर्म में अकर्म (शरीर को कर्ता न समझकर आत्मा को कर्ता) देखता है और जो मनुष्य अकर्म में कर्म (आत्मा को कर्ता न समझकर प्रकृति को कर्ता) देखता है, वह मनुष्यों में बुद्धिमान है और वह मनुष्य समस्त कर्मों को करते हुये भी सांसारिक कर्मफ़लों से मुक्त रहता है। 


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श्रीमद् भगवद् गीता :- श्लोक 39 - (Shlok 39)

 श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः । ज्ञानं लब्धवा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति ॥  भावार्थ : जो मनुष्य पूर्ण श्रद्धावान है और जिसने...