कर्मण्य कर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः ।
स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत् ॥
भावार्थ : जो मनुष्य कर्म में अकर्म (शरीर को कर्ता न समझकर आत्मा को कर्ता) देखता है और जो मनुष्य अकर्म में कर्म (आत्मा को कर्ता न समझकर प्रकृति को कर्ता) देखता है, वह मनुष्यों में बुद्धिमान है और वह मनुष्य समस्त कर्मों को करते हुये भी सांसारिक कर्मफ़लों से मुक्त रहता है।
Follow Pavitra Bhajan On:
►Facebook: https://www.facebook.com/pg/PavitraBhajan/
►Instagram: https://www.instagram.com/pavitrabhajan/
►Twitter: https://twitter.com/bhajanpavitra
►Pinterest: https://in.pinterest.com/pavitrabhajanofficial/
►YouTube: https://www.youtube.com/channel/UCIZ_t3D1pAGxcVXWMaqTHOw
No comments:
Post a Comment