Monday 23 August 2021

श्रीमद् भगवद् गीता :- श्लोक 39 - (Shlok 39)

 श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः ।
ज्ञानं लब्धवा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति ॥ 



भावार्थ : जो मनुष्य पूर्ण श्रद्धावान है और जिसने इन्द्रियों को वश में कर लिया है, वही मनुष्य दिव्य-ज्ञान को प्राप्त होकर वह तत्क्षण भगवत-प्राप्ति रूपी परम-शान्ति को प्राप्त हो जाता है।



श्रीमद् भगवद् गीता :- श्लोक 38 - (Shlok 38)

 न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते ।
तत्स्वयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति ॥ 





भावार्थ : इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र करने वाला निःसंदेह कुछ भी नहीं है, इस ज्ञान को तू स्वयं अपने हृदय में योग की पूर्णता के समय अपनी ही आत्मा में अनुभव करेगा। 


श्रीमद् भगवद् गीता :- श्लोक 37 - (Shlok 37)

 यथैधांसि समिद्धोऽग्निर्भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन ।
ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा ॥



भावार्थ : हे अर्जुन! जिस प्रकार अग्नि ईंधन को जला कर भस्म कर देती है, उसी प्रकार यह ज्ञान-रूपी अग्नि सभी सांसारिक कर्म-फ़लों को जला कर भस्म कर देती है। 


श्रीमद् भगवद् गीता :- श्लोक 36 - (Shlok 36)

 अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः ।
सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं सन्तरिष्यसि ॥ 



भावार्थ : यदि तू सभी पापियों से भी अधिक पाप करने वाला है, तो भी तू मेरे ज्ञान-रूपी नौका द्वारा निश्चित रूप से सभी प्रकार के पापों से छूटकर संसार-रूपी दुख के सागर को पार कर जाएगा। 


श्रीमद् भगवद् गीता :- श्लोक 35 - (Shlok 35)

 यज्ज्ञात्वा न पुनर्मोहमेवं यास्यसि पाण्डव ।
येन भुतान्यशेषेण द्रक्ष्यस्यात्मन्यथो मयि ॥ 



भावार्थ : हे पाण्डुपुत्र! उस तत्व-ज्ञान को जानकर फिर तू कभी इस प्रकार के मोह को प्राप्त नही होगा तथा इस जानकारी के द्वारा आचरण करके तू सभी प्राणीयों में अपनी ही आत्मा का प्रसार देखकर मुझ परमात्मा में प्रवेश पा सकेगा।


Friday 13 August 2021

श्रीमद् भगवद् गीता :- श्लोक 34 - (Shlok 34)

 तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया ।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्वदर्शिनः ॥



भावार्थ : यज्ञों के उस ज्ञान को तू गुरू के पास जाकर समझने का प्रयत्न कर, उनके प्रति पूर्ण-रूप से शरणागत होकर सेवा करके विनीत-भाव से जिज्ञासा करने पर वे तत्वदर्शी ब्रह्म-ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्व-ज्ञान का उपदेश करेंगे। 



श्रीमद् भगवद् गीता :- श्लोक 33 - (Shlok 33)

 श्रेयान्द्रव्यमयाद्यज्ञाज्ज्ञानयज्ञः परन्तप ।
सर्वं कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते ॥ 



भावार्थ : हे परंतप अर्जुन! धन-सम्पदा के द्वारा किये जाने वाले यज्ञ की अपेक्षा ज्ञान-यज्ञ अत्यन्त श्रेष्ठ है तथा सभी प्रकार के कर्म ब्रह्म-ज्ञान में पूर्ण-रूप से समाप्त हो जाते हैं। 


श्रीमद् भगवद् गीता :- श्लोक 32 - (Shlok 32)

 एवं बहुविधा यज्ञा वितता ब्रह्मणो मुखे ।
कर्मजान्विद्धि तान्सर्वानेवं ज्ञात्वा विमोक्ष्यसे ॥ 



भावार्थ : इसी प्रकार और भी अनेकों प्रकार के यज्ञ वेदों की वाणी में विस्तार से कहे गए हैं, इस तरह उन सबको कर्म से उत्पन्न होने वाले जानकर तू कर्म-बंधन से हमेशा के लिये मुक्त हो जाएगा।


Tuesday 10 August 2021

श्रीमद् भगवद् गीता :- श्लोक 31 - (Shlok 31)

 यज्ञशिष्टामृतभुजो यान्ति ब्रह्म सनातनम्‌ ।
नायं लोकोऽस्त्ययज्ञस्य कुतोऽन्यः कुरुसत्तम ॥ 



भावार्थ : हे कुरुश्रेष्ठ अर्जुन! यज्ञों के फ़ल रूपी अमृत को चखकर यह सभी योगी सनातन परब्रह्म परमात्मा को प्राप्त होते हैं, और यज्ञ को न करने वाले मनुष्य तो इस जीवन में भी सुख-पूर्वक नहीं रह सकते है, तो फिर अगले जीवन में कैसे सुख को प्राप्त हो सकते है?


Monday 9 August 2021

श्रीमद् भगवद् गीता :- श्लोक 30 - (Shlok 30)

 अपरे नियताहाराः प्राणान्प्राणेषु जुह्वति ।
सर्वेऽप्येते यज्ञविदो यज्ञक्षपितकल्मषाः ॥


 
भावार्थ : कुछ मनुष्य भोजन को कम करके प्राण-वायु को प्राण-वायु में ही हवन किया करते हैं, ये सभी यज्ञ करने वाले यज्ञों का अर्थ जानने के कारण सभी पाप-कर्मों से मुक्त हो जाते हैं। 


Friday 6 August 2021

श्रीमद् भगवद् गीता :- श्लोक 29 - (Shlok 29)

 अपाने जुह्वति प्राणं प्राणेऽपानं तथापरे ।
प्राणापानगती रुद्ध्वा प्राणायामपरायणाः ॥



भावार्थ : बहुत से मनुष्य अपान-वायु में प्राण-वायु का, उसी प्रकार प्राण-वायु में अपान-वायु का हवन करते हैं तथा अन्य मनुष्य प्राण-वायु और अपान-वायु की गति को रोक कर समाधि मे प्रवृत होते है। 


श्रीमद् भगवद् गीता :- श्लोक 39 - (Shlok 39)

 श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः । ज्ञानं लब्धवा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति ॥  भावार्थ : जो मनुष्य पूर्ण श्रद्धावान है और जिसने...