Wednesday, 21 July 2021

श्रीमद् भगवद् गीता :- श्लोक 20 - (Shlok 20)

 त्यक्त्वा कर्मफलासङ्गं नित्यतृप्तो निराश्रयः ।
कर्मण्यभिप्रवृत्तोऽपि नैव किंचित्करोति सः ॥ 



भावार्थ : जो मनुष्य अपने सभी कर्म-फलों की आसक्ति का त्याग करके सदैव सन्तुष्ट तथा स्वतन्त्र रहकर कार्यों में पूर्ण व्यस्त होते हुए भी वह मनुष्य निश्चित रूप से कुछ भी नहीं करता है।


No comments:

Post a Comment

श्रीमद् भगवद् गीता :- श्लोक 39 - (Shlok 39)

 श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः । ज्ञानं लब्धवा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति ॥  भावार्थ : जो मनुष्य पूर्ण श्रद्धावान है और जिसने...