Friday, 23 July 2021

श्रीमद् भगवद् गीता :- श्लोक 21 - (Shlok 21)

 निराशीर्यतचित्तात्मा त्यक्तसर्वपरिग्रहः ।
शारीरं केवलं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम्‌ ॥ 



भावार्थ : जिस मनुष्य ने सभी प्रकार के कर्म-फ़लों की आसक्ति और सभी प्रकार की सम्पत्ति के स्वामित्व का त्याग कर दिया है, ऎसा शुद्ध मन तथा स्थिर बुद्धि वाला, केवल शरीर-निर्वाह के लिए कर्म करता हुआ कभी पाप-रूपी फ़लों को प्राप्त नही होता है।


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श्रीमद् भगवद् गीता :- श्लोक 39 - (Shlok 39)

 श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः । ज्ञानं लब्धवा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति ॥  भावार्थ : जो मनुष्य पूर्ण श्रद्धावान है और जिसने...