Wednesday, 21 July 2021

श्लोक 26-27 - (Shlok 26-27)

 तत्रापश्यत्स्थितान्‌ पार्थः पितृनथ पितामहान्‌ ।
आचार्यान्मातुलान्भ्रातृन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा ॥ 
श्वशुरान्‌ सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि ।
तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्‌ बन्धूनवस्थितान्‌ ॥ 



भावार्थ : वहाँ पृथापुत्र अर्जुन ने अपने ताऊओं-चाचाओं को, दादों-परदादों को, गुरुओं को, मामाओं को, भाइयों को, पुत्रों को, पौत्रों को और मित्रों को देखा। कुन्ती-पुत्र अर्जुन ने ससुरों को और शुभचिन्तकों सहित दोनों तरफ़ की सेनाओं में अपने ही सभी सम्बन्धियों को देखा। 


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श्रीमद् भगवद् गीता :- श्लोक 39 - (Shlok 39)

 श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः । ज्ञानं लब्धवा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति ॥  भावार्थ : जो मनुष्य पूर्ण श्रद्धावान है और जिसने...