Wednesday, 21 July 2021

श्लोक 35 - (Shlok 35)

 एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन ।
अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृते ॥ 



भावार्थ : हे मधुसूदन! मैं इन सभी को मारना नहीं चाहता हूँ, भले ही यह सभी मुझे ही मार डालें, तीनों लोकों के राज्य के लिए भी मैं इन सभी को मारना नहीं चाहता, फिर पृथ्वी के लिए तो कहना ही क्या है?


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श्रीमद् भगवद् गीता :- श्लोक 39 - (Shlok 39)

 श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः । ज्ञानं लब्धवा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति ॥  भावार्थ : जो मनुष्य पूर्ण श्रद्धावान है और जिसने...