यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतसः ।
कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम् ॥
कथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मान्निवर्तितुम् ।
कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन ॥
भावार्थ : यधपि लोभ के कारण इन भ्रमित चित्त वालों को कुल के नाश से उत्पन्न होने वाले दोष दिखाई नही देते हैं, और मित्रों से विरोध करने में कोई पाप दिखाई नही देता है। हे जनार्दन! हम लोग तो कुल के नाश से उत्पन्न दोष को समझने वाले हैं क्यों न हमें इस पाप से बचने के लिये विचार करना चाहिये।
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