Wednesday, 7 July 2021

श्लोक 7 - (Shlok 7)

 यस्त्विन्द्रियाणि मनसा नियम्यारभतेऽर्जुन ।
कर्मेन्द्रियैः कर्मयोगमसक्तः स विशिष्यते ॥ 



भावार्थ : हे अर्जुन! जो मनुष्य मन के द्वारा इन्द्रियों को वश में करने का प्रयत्न करता है और बिना किसी आसक्ति के कर्म-योग (निष्काम कर्म-योग) का आचरण करता है, वही सभी मनुष्यों में अति-उत्तम मनुष्य है। 


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श्रीमद् भगवद् गीता :- श्लोक 39 - (Shlok 39)

 श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः । ज्ञानं लब्धवा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति ॥  भावार्थ : जो मनुष्य पूर्ण श्रद्धावान है और जिसने...