(यज्ञ की उत्पत्ति का निरूपण)
यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबंधनः ।
तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसंगः समाचर ॥
यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबंधनः ।
तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसंगः समाचर ॥
भावार्थ : यज्ञ की प्रक्रिया ही कर्म है इस यज्ञ की प्रक्रिया के अतिरिक्त जो भी किया जाता है उससे जन्म-मृत्यु रूपी बन्धन उत्पन्न होता है, अत: हे कुन्तीपुत्र! उस यज्ञ की पूर्ति के लिये संग-दोष से मुक्त रहकर भली-भाँति कर्म का आचरण कर।
Follow Pavitra Bhajan On:
►Facebook: https://www.facebook.com/pg/PavitraBhajan/
►Instagram: https://www.instagram.com/pavitrabhajan/
►Twitter: https://twitter.com/bhajanpavitra
►Pinterest: https://in.pinterest.com/pavitrabhajanofficial/
►YouTube: https://www.youtube.com/channel/UCIZ_t3D1pAGxcVXWMaqTHOw
No comments:
Post a Comment