Wednesday, 7 July 2021

श्लोक 22 - (Shlok 22)

 वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥



भावार्थ : जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नए वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नए शरीरों को प्राप्त होता है॥


Follow Pavitra Bhajan On: 

►Facebook: https://www.facebook.com/pg/PavitraBhajan/

►Instagram: https://www.instagram.com/pavitrabhajan/​

►Twitter: https://twitter.com/bhajanpavitra

►Pinterest: https://in.pinterest.com/pavitrabhajanofficial/

►YouTube: https://www.youtube.com/channel/UCIZ_t3D1pAGxcVXWMaqTHOw

No comments:

Post a Comment

श्रीमद् भगवद् गीता :- श्लोक 39 - (Shlok 39)

 श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः । ज्ञानं लब्धवा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति ॥  भावार्थ : जो मनुष्य पूर्ण श्रद्धावान है और जिसने...