Wednesday, 7 July 2021

श्लोक 34 - (Shlok 34)

 इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ ।
तयोर्न वशमागच्छेत्तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ ॥ 



भावार्थ : सभी इन्द्रियाँ और इन्द्रियों के विषयों के प्रति आसक्ति (राग) और विरक्ति (द्वेष) नियमों के अधीन स्थित होती है, मनुष्य को इनके आधीन नहीं होना चाहिए, क्योंकि दोनो ही आत्म-साक्षात्कार के पथ में अवरोध उत्पन्न करने वाले हैं। 



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श्रीमद् भगवद् गीता :- श्लोक 39 - (Shlok 39)

 श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः । ज्ञानं लब्धवा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति ॥  भावार्थ : जो मनुष्य पूर्ण श्रद्धावान है और जिसने...