श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात् ।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः ॥
भावार्थ : दूसरों के कर्तव्य (धर्म) को भली-भाँति अनुसरण (नकल) करने की अपेक्षा अपना कर्तव्य-पालन (स्वधर्म) को दोष-पूर्ण ढंग से करना भी अधिक कल्याणकारी होता है। दूसरे के कर्तव्य का अनुसरण करने से भय उत्पन्न होता है, अपने कर्तव्य का पालन करते हुए मरना भी श्रेयस्कर होता है।
Follow Pavitra Bhajan On:
►Facebook: https://www.facebook.com/pg/PavitraBhajan/
►Instagram: https://www.instagram.com/pavitrabhajan/
►Twitter: https://twitter.com/bhajanpavitra
►Pinterest: https://in.pinterest.com/pavitrabhajanofficial/
►YouTube: https://www.youtube.com/channel/UCIZ_t3D1pAGxcVXWMaqTHOw
No comments:
Post a Comment