Wednesday, 7 July 2021

श्लोक 43 - (Shlok 43)

 एवं बुद्धेः परं बुद्धवा संस्तभ्यात्मानमात्मना ।
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्‌ ॥ 



भावार्थ : इस प्रकार हे महाबाहु अर्जुन! स्वयं को मन और बुद्धि से श्रेष्ठ आत्मा-रूप समझकर, बुद्धि के द्वारा मन को स्थिर करके तू कामनाओं रूपी दुर्जय शत्रुओं को मार। 


No comments:

Post a Comment

श्रीमद् भगवद् गीता :- श्लोक 39 - (Shlok 39)

 श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः । ज्ञानं लब्धवा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति ॥  भावार्थ : जो मनुष्य पूर्ण श्रद्धावान है और जिसने...