Tuesday, 10 August 2021

श्रीमद् भगवद् गीता :- श्लोक 31 - (Shlok 31)

 यज्ञशिष्टामृतभुजो यान्ति ब्रह्म सनातनम्‌ ।
नायं लोकोऽस्त्ययज्ञस्य कुतोऽन्यः कुरुसत्तम ॥ 



भावार्थ : हे कुरुश्रेष्ठ अर्जुन! यज्ञों के फ़ल रूपी अमृत को चखकर यह सभी योगी सनातन परब्रह्म परमात्मा को प्राप्त होते हैं, और यज्ञ को न करने वाले मनुष्य तो इस जीवन में भी सुख-पूर्वक नहीं रह सकते है, तो फिर अगले जीवन में कैसे सुख को प्राप्त हो सकते है?


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श्रीमद् भगवद् गीता :- श्लोक 39 - (Shlok 39)

 श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः । ज्ञानं लब्धवा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति ॥  भावार्थ : जो मनुष्य पूर्ण श्रद्धावान है और जिसने...