Friday, 13 August 2021

श्रीमद् भगवद् गीता :- श्लोक 32 - (Shlok 32)

 एवं बहुविधा यज्ञा वितता ब्रह्मणो मुखे ।
कर्मजान्विद्धि तान्सर्वानेवं ज्ञात्वा विमोक्ष्यसे ॥ 



भावार्थ : इसी प्रकार और भी अनेकों प्रकार के यज्ञ वेदों की वाणी में विस्तार से कहे गए हैं, इस तरह उन सबको कर्म से उत्पन्न होने वाले जानकर तू कर्म-बंधन से हमेशा के लिये मुक्त हो जाएगा।


No comments:

Post a Comment

श्रीमद् भगवद् गीता :- श्लोक 39 - (Shlok 39)

 श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः । ज्ञानं लब्धवा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति ॥  भावार्थ : जो मनुष्य पूर्ण श्रद्धावान है और जिसने...